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कविता माँ – एक अमर एहसास

मेरा प्रयास
मेरा प्रयास
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माँ पालने में पहली दफा
जब तूने मुझे झुला झुलाया थाI
माँ तूने ही तब पहले प्यार का
एहसास मुझे कराया थाII

माँ बचपन में अपनी गोद में
तूने मुझे सुलाया थाI
माँ तेरे ही आँचल की शीतल छाव में
महफूज़ खुद को पाया थाII

माँ अपने नरम हाथो से
जब तूने मुझे सहलाया थाI
तब मैंने खुद को
धन्य-धान्य से परिपूर्ण पाया थाII

माँ मेरे बचपन की यादों को
ख़ास तुम बनाती होI
साथ हमेशा रहकर
मेरे आत्मविश्वास को मजबूत तुम बनाती होII

दुःख के क्षण में
घिरा खुद को जब मैंने पाया थाI
माँ तब तेरे ममतामयी स्पर्श ने ही
मेरे दुःख को मिटाया थाII

गैरों ने जब अपने छल-छन्दों से
घायल मुझको किया थाI
तब तूने उस मुश्किल घड़ी
को आसानी से हल किया थाII

माँ जब-जब काटो की
चुभन ने मुझको बेतहा तड़पाया थाI
तेरी ही बातो ने
माँ मुझे फूल गुलाब का दिखलाया थाII
रिश्तों के महत्व को मुझे बतलाने वाली!
मानवता के पाठ को पढ़ाने वाली!
हे जगदायिनी! धरती में स्वर्ग का सा आभास कराने वाली
जीवन के मूल्यों से मुझको अवगत करवाने वाली!
तू ही हैं चारदीवारी को घर बनाने वाली!
माँ तू ही हैं चारदीवारी को घर बनाने वालीII

ईश्वर से करती हूँ यही कामना
हर जन्म में कोख तुम्हारी पाऊI
जीवन के हर मोड़ पर
माँ साथ तुम्हारा पाऊII

बेटी रूप में जन्मी माँ मैं
मुझे बेटो सा आभास तूने कराया थाI
अपने जन्म दिवस में
आशीष सबसे अधिक तेरा पाया थाII

रहे तेरा हाथ सदा मेरे सिर पर
बस यही कामना करती हूँI
माँ तेरे समर्पण भाव को
नित-नित नमन करती हूँII

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